
श्री ब्रह्मरामायण
ब्रह्म में रमण करनेवाले महापुरुष संसार में आक्रांत लोगों को देखकर करुणावश निर्दुःख पद में पहुँचानेवाले परब्रह्म परमात्मा का दुर्लभ एवं सूक्ष्म ज्ञान जनमानस को सुलभता से मिल सके इसलिए तरह-तरह के प्रयास करते रहते हैं । एक ब्रह्मवेत्ता संत द्वारा लिखा गया शास्त्रों के सार का पद्यरूप है पुस्तक ‘श्री ब्रह्मरामायण’ । यह पुस्तक आत्मज्ञान के पिपासुओं के लिए अमूल्य वरदान है । इसके पठन-मनन से सहज में ही चित्त में शांति, व्यवहार में मधुरता एवं आत्म-ज्ञान की ओर रुचि बढ़ने लगती है ।
इसमें है :
* ब्रह्मवेत्ता पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की संक्षिप्त जीवनी
* अजर एवं अमर होने का उपाय क्या है ?
* दु:खालय संसार में सुख से कैसे विचरे ?
* आश्चर्य है ! आश्चर्य है !!
* मैं सत्य हूँ मैं ज्ञान हूँ, मैं ब्रह्मदेव अनन्त हूँ... (प्राज्ञ-वाणी)
* कैसे भला फिर दीन हो ?
* संसार में बैल की तरह दिन-रात बोझा क्यों ढो रहे हैं एवं उससे कैसे छूटें ?
* किसके लिए एवं कैसे सब हानि-लाभ समान है ?
* सर्वात्म अनुसंधान कर...
* बस, आपमें लवलीन हो
* ममता-अहंता छोड़ दे
* इच्छाओं का त्याग कैसे करें जिससे जन्म-मरणरूप दुःख से मुक्त हो जायें
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