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गुरू भक्ति योग (Guru Bhakti Yog)
लेखकः श्री स्वामी शिवानन्द सरस्वती
सम्पादकः श्री स्वामी सच्चिदानंद
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आकल्पजन्मकोटीनां यज्ञव्रततपः क्रियाः ।
ताः सर्वाः सफला देवि गुरूसंतोषमात्रतः ।।
'हे देवी ! कल्पपर्यन्त के, करोड़ों जन्मों के यज्ञ, व्रत, तप और शास्त्रोक्त क्रियाएँ... ये सब गुरूदेव के संतोष मात्र से सफल हो जाते हैं ।' (भगवान शंकर)
अमानमत्सरो दक्षो निर्ममो दृढ़सौहृदः।
असत्वरोऽर्थ जिज्ञासुः अनसूयुः अमोघवाक्।।
'सत्शिष्य मान और मत्सर से रहित, अपने कार्य में दक्ष, ममता रहित, गुरू में दृढ़ प्रीतिवाला, निश्चलचित्त, परमार्थ का जिज्ञासु, ईर्ष्या से रहित और सत्यवादी होता है ।'
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