
गुरुभक्तियोग
शास्त्रों व महापुरुषों का मत है कि विवेकी मनुष्य को ईश्वर से भी अधिक गुरु की भक्ति करनी चाहिए क्योंकि कोई मनुष्य समस्त शास्त्रों में प्रवीण हो तो भी गुरुभक्ति के बिना आत्मज्ञान नहीं पा सकता । गुरु की आवश्यकता, गुरु के प्रति शिष्य की भक्ति कैसी होनी चाहिए एवं गुरु के मार्गदर्शन के द्वारा साधक-शिष्य किस प्रकार आत्मसाक्षात्कार कर सकता है - इन सभी विषयों का संकलन है स्वामी शिवानंदजी द्वारा रचित पुस्तक ‘गुरुभक्तियोग’ में । यह पुस्तक परमात्मप्राप्ति के पथिकों के लिए ‘सलामती योग’ माने गये गुरुभक्तियोग की राह दिखानेवाला महान सद्ग्रंथ है ।
इसमें जानेंगे :
* मनुष्य-जीवन की पूर्णता हेतु कितनी आवश्यकता है ब्रह्मज्ञानी गुरु की ?
* गुरु की महत्ता
* गुरुभक्तियोग का रहस्य
* कलियुग में सलामत मार्ग
* गुरुभक्तियोग एक विज्ञान के रूप में
* गुरुभक्तियोग का महत्त्व
* कैसे करें गुरुभक्ति का अभ्यास
* क्या है गुरु के अनुकूल होने का सिद्धांत ?
* मन को संयम में रखने की रीति
* कौन होते हैं साधक के सच्चे पथ-प्रदर्शक ?
* शिष्य के लिए गुरु ही एकमात्र आश्रय
* गुरु : एक महान पथप्रदर्शक
* गुरुभक्तियोग के मूल सिद्धांत
* गुरुभक्ति के लिए योग्यता
* गुरुभक्ति और गुरुसेवा
* क्या है आत्मसाक्षात्कार का रहस्य ?
* गुरुकृपा से प्राप्त होनेवाली प्रसन्नता
* गुरु का उन्नतिकारक सान्निध्य
* गुरु के साथ तादात्म्य कैसे स्थापित करें ?
* ईश्वर-साक्षात्कार का सबसे सरल मार्ग क्या है ?
* योग्य व्यवहार के नियम
* गुरुभक्ति के लाभ
* सच्चे सुख का मूल
* श्रीमद् आद्य शंकराचार्यजी द्वारा रचित गुरु-महिमा संबंधी स्तोत्र (गुर्वष्टकम्)
* एक अद्भुत विभूति पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
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