
इष्टसिद्धि
भाव, विचार, स्वच्छता और पवित्रता से साधना का संरक्षण करते हुए यदि विधिसहित अनुष्ठान किया जाय तो इष्टमंत्र सिद्ध हो जाता है । जिसका इष्ट मजबूत होता है उसका अनिष्ट नहीं हो सकता ।
मानसिक व बौद्धिक बल का विकास करके अपना जीवन सदा-सदा के लिए शाश्वत सुख, शाश्वत शांति में, जीवन्मुक्ति के विलक्षण आनंद में सराबोर करने की इच्छा रखनेवाले साधकों के लिए यह पुस्तक संत-प्रसाद है ।
मंत्रानुष्ठान से आध्यात्मिक उन्नति तो होती ही है लौकिक जीवन की समस्याओं का हल, जीवन के हर क्षेत्र में सफलता आदि लाभ भी सहज में होने लगते हैं ।
मंत्रानुष्ठान विषयक मार्गदर्शन हेतु 'इष्टसिद्धि' पुस्तक बनायी गयी है । इसमें आप पायेंगे :
* हम भीतर से दुःखी क्यों हैं, अशांत क्यों हैं ?
* ऐसे दुविधापूर्ण जीवन में क्या किया जाय ?
* शास्त्रों में उपासना के प्रसंग
* पारमार्थिक क्षेत्र का टेलिफोन है - मंत्र
* मंत्र-जप कैसे करें ?
* अनुष्ठान की आवश्यकता क्यों ?
* अनुष्ठान के लिए कौन-सा स्थान उपयुक्त है ?
* आसन कैसा होना चाहिए ?
* कौन-सी दिशा में बैठना चाहिए ?
* कौन-सी माला का उपयोग करें ?
* माला कैसे घुमानी चाहिए ?
* अनुष्ठान में मंत्र-जप की संख्या कितनी होनी चाहिए ?
* कैसा भोजन लेना चाहिए ?
* मौन के प्रकार
* ब्रह्मचर्य का पालन करें
* अनुष्ठान अकेले करें
* वासना का दीया बुझाओ, अंतर ज्योत जगाओ
* शयन कब, कैसे ?
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