
जीते जी मुक्ति
पूज्यपाद स्वामी जी की सहज बोलचाल की भाषा में ज्ञान, भक्ति और योग की अनुभव-सम्पन्न वाणी का लाभ श्रोताओं को तो प्रत्यक्ष मिलता ही है, घर बैठे अन्य भी भाग्यवान आत्माओं तक यह दिव्य प्रसाद पहुँचे इसलिए पू. स्वामी जी के सत्संग-प्रवचनों में से कुछ अंश संकलित करके यहाँ लिपिबद्ध किया गया है ।
इस अनूठी वाग्धारा में पूज्यश्री कहते हैं-
"..... प्रतीति संसार की होती है, प्राप्ति परमात्मा की होती है ।"
".....माया दुस्तर है लेकिन मायापति की शरण जाने से माया तरना सुगम हो जाता है ।"
"..... ईश्वर किसी मत, पंथ, मजहब की दीवारों में सीमित नहीं है । वेदान्त की दृष्टि से वह प्राणिमात्र के हृदय में और अनन्त ब्रह्माण्डों में व्याप रहा है। केवल प्रतीति होने वाली मिथ्या वस्तुओं का आकर्षण कम होते ही साधक उस सदा प्राप्त ईश्वर को पा लेता है ।"
".... जितने जन्म-मरण हो रहे हैं वे प्रज्ञा के अपराध से हो रहे हैं । अतः प्रज्ञा को दैवी सम्पदा करके यहीं मुक्ति का अनुभव करो ।"
"...... कर्म का बदला जन्म-जन्मान्तर लेकर भी चुकाना पड़ता है । अतः कर्म करने में सावधान.... और कर्म का फल भोगने में प्रसन्न....।"
"......रामनाथ तर्करत्न और धर्मपत्नी बाहर से अकिंचन फिर भी पूर्ण स्वतन्त्र । बिना सुविधाओं के भी निर्भीक और सुखी रहना मनुष्य के हाथ की बात है । वस्तुएँ और सुविधा होते हुए भी भयभीत और दुःखी रहना यह मनुष्य की नासमझी है ।"
".....मनुष्य जैसा सोचता है वैसा हो जाता है। मन कल्पतरू है । अतः सुषुप्त दिव्यता को, दिव्य साधना से जगाओ । अपने में दिव्य विचार भरो ।"
इस प्रकार की सहज बोलचाल के रूप में प्रकट होने वाली, गहन योगानुभूतियों से सम्पन्न अमृतवाणी का संकलन आपके करकमलों तक पहुँचाने का हमें सौभाग्य मिल रहा है । स्वयं इससे लाभान्वित होकर अन्य सज्जनों तक पहुँचायें और आप भी सौभाग्यशाली बनें इसी अभ्यर्थना के साथ....
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