
कर्म में कुशलता (Karm Me Kushalata)
* व्यक्ति केवल कर्म करता रहे तो बंधन से नहीं छूटेगा ।
* कर्म की कुशलता यह है कि हम कर्मों के बंधन से छूट जायें, न सुख में बँधें न दुःख में अपितु प्राप्त अवस्था का उपयोग करें ।
* अभक्त को भक्ति के रास्ते लगाने, अपने से छोटे व दीन - दुःखियों की सहायता करने और पूज्य व्यक्तियों की सेवा करने से अंतःकरण शुद्ध होता है ।
* यज्ञ, दान और तप से बुद्धि शुद्ध होती है और शुद्ध बुद्धि समता के सिंहासन पर बैठती है ।
* किसीने दुनियाभर का धन कमा लिया, सत्ता पा ली, यश कमा लिया परंतु चित में समता नहीं लायी तो वह आदमी कंगाल है ।
* कमाल और दादु दीनदयाल की भावपूर्ण कथा ।
* जिसके हृदय में भगवत्प्राप्त महापुरुषों के लिए श्रद्धा है, प्रेम है वह देर - सवेर उस तत्त्व को पा लेता है ।
वीसीडी के साथ प्रसादरूप मैं पायें शरद पूनम की चाँदनी से पुष्ट हुए गुलाबजलयुक्त एक आयुर्वेदिक संतकृपा नेत्रविंदु
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
20
All major credit, debit cards & Net Banking options available.
Order any product through Android or iphone app
100% MoneyBack Guarantee.
Copyright © Ashram eStore. All rights reserved.