कर्म में कुशलता (Karm Me Kushalata)
* व्यक्ति केवल कर्म करता रहे तो बंधन से नहीं छूटेगा ।
* कर्म की कुशलता यह है कि हम कर्मों के बंधन से छूट जायें, न सुख में बँधें न दुःख में अपितु प्राप्त अवस्था का उपयोग करें ।
* अभक्त को भक्ति के रास्ते लगाने, अपने से छोटे व दीन - दुःखियों की सहायता करने और पूज्य व्यक्तियों की सेवा करने से अंतःकरण शुद्ध होता है ।
* यज्ञ, दान और तप से बुद्धि शुद्ध होती है और शुद्ध बुद्धि समता के सिंहासन पर बैठती है ।
* किसीने दुनियाभर का धन कमा लिया, सत्ता पा ली, यश कमा लिया परंतु चित में समता नहीं लायी तो वह आदमी कंगाल है ।
* कमाल और दादु दीनदयाल की भावपूर्ण कथा ।
* जिसके हृदय में भगवत्प्राप्त महापुरुषों के लिए श्रद्धा है, प्रेम है वह देर - सवेर उस तत्त्व को पा लेता है ।
वीसीडी के साथ प्रसादरूप मैं पायें शरद पूनम की चाँदनी से पुष्ट हुए गुलाबजलयुक्त एक आयुर्वेदिक संतकृपा नेत्रविंदु
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