मंत्रजाप महिमा एवं अनुष्ठान विधि
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भगवन्नाम अनन्त माधुर्य, ऐश्वर्य और सुख की खान है । सभी शास्त्रों में नाम की महिमा का वर्णन किया गया है । इस नानाविध आधि-व्याधि से ग्रस्त कलिकाल में हरिनाम-जप संसार सागर से पार होने का एकउत्तम साधन है ।
आज के भौतिकवादी युग में जितनी यंत्रशक्ति प्रभावी हो सकती है, उससे कहीं अधिक प्रभावी एवं सूक्ष्म मंत्रशक्ति होती है। मंत्र एक ऐसा साधन है जो हमारे भीतर सोयी हुई चेतना को जगा देता है, हमारी सुषुप्त शक्तियों को विकसित कर देता है, हमारी महानता को प्रकट कर देता है । माता-पिता हमारे स्थूल शरीर को जन्म देते हैं, जबकि ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु, आत्मनिष्ठा में जागे हुए महापुरुष मंत्रदीक्षा के द्वारा हमारे चिन्मय वपु (शरीर ) को जन्म देते हैं । मंत्र द्वारा मनुष्य अपनी सुषुप्त शक्तियों का विकास कर के महान बन सकता है । मंत्र के जप से चंचलता दूर होती है ,जीवन में संयम आता है, चमत्कारिक रुप से एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति में वृद्धि होती है । शरीर के अलग-अलग केन्द्रों पर मंत्र का अलग -अलग प्रभाव पड़ता है । मंत्रशक्ति की महिमा को जानकर आज तक कई महापुरुष विश्व में आदरणीय एवं पूजनीय स्थान प्राप्त कर चुके हैं, जैसे कि महावीर स्वामी, महात्मा बुद्ध, संत कबीरजी, नानकदेवजी, स्वामी विवेकानंद, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी रामतीर्थ, पूज्यपाद स्वामी श्री लीलाशाहजी महाराज आदि-आदि।
* मंत्र शक्ति को यथार्थ रूप में जाननेवाले एवं हमारे भीतर उस सुषुप्त शक्ति को जगा देने का सामर्थ्य रखनेवाले सद्गुरु के मार्गदर्शन के मुताबिक मंत्र जप किया जाय तो फिर साधक के जीवन-विकास में चार चाँद लग जाते हैं।
-पूज्य संत श्री आशारामजी बापू