सच्चा सुख - Sachcha Sukh(Guj.)
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मानव बेचारा सुबह से शाम तक, जीवन से मौत तक सुख की तलाश में भटकता रहता है लेकिन उसे पता ही नहीं कि सच्चा सुख कहाँ से और कैसे मिलेगा । वह कभी व्यक्ति से, कभी वस्तु से, कभी परिस्थितयों से सुख खोजने में अथक परिश्रम करता है लेकिन सच्चा सुख क्या है और वह कैसे मिलता है ? यह उसे पता नहीं चल पाता और अंत में निराश होकर, पराधीन होकर इस दुनिया से विदा हो जाता है । सच्चा सुख वही दे सकता है जिसने पाया हो । सच्चे सुख के अनुभव से तृप्त महापुरुष पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के आत्मानुभूति-सम्पन्न हृदय से छलके ज्ञान का संकलन है सत्साहित्य ‘सच्चा सुख’ । इसमें आप पायेंगे :
* सच्चा सुख क्या है ?
* सच्चे सुख की प्राप्ति कैसे हो ?
* रागरहित होना है तो क्या करना चाहिए ?
* जब दुःख, मुसीबत आयें तब क्या करें ?
* हम दुःखी कब होते हैं?
* सूरदासजी का जीवन कैसे परिवर्तित हुआ ?
* सच्चे सुख के इच्छुक किसका संग करें ?
* वेश्यागामी एक युवक सच्चा सुख पाकर महान संत कैसे बना ?
* क्या है विवेक का दर्पण ?
* कहीं हम अपने साथ शत्रुता तो नहीं कर रहे हैं ?
* दिल कहाँ लगायें कि सच्चा सुख ही पायें ?
* तुम विषयों की भीख कब तक माँगते रहोगे ?
* एक दिन ऐसा आयेगा जब कुटुम्बी रोयेंगे, डॉक्टर तुम्हें मौत से नहीं बचा पायेंगे... उस दिन की तैयारी अभी से कैसे करें ?
* वासनाओं का अंत कैसे हो ?
* क्या है सफलता का मूल?
* बिना तीर्थ नहाये भी असीम पुण्य की प्राप्ति...
* अपनी वृत्ति संयत करें तो मंजिल तक पहुँचेंगे
* सत्संग की सीख : निरीक्षण, शिक्षण और नियंत्रण
* ईश्वरप्राप्ति हेतु अभ्यास जरूरी है
* प्राप्त वस्तुओं का सदुपयोग करने की कला