
सहज साधना
साधना की रीति गुरुआज्ञा-पालन में निहित है और साधना का मर्म गुरुकृपा में है । ईश्वर की कृपा जिन पर होती है उन्हें ही सद्गुरु मिलते हैं और जिन्हें सद्गुरु मिल जायें उन्हें साधना करनी नहीं पड़ती, उनकी साधना गुरुआज्ञा पालने व गुरुवचनों का मनन-चिंतन करने से सहज में होने लगती है । बात वही असर करती है जो दिल से निकलती है । रटी-रटायी बातों का हमारे दिलों पर वह प्रभाव नहीं पड़ता जैसा आत्मारामी सत्पुरुषों की अनुभवमूलक वाणी का प्रभाव पड़ता है । उनके करुणामय हृदय से निःसृत वाणी का प्रभाव अनूठा होता है । ऐसी अनूठी दिव्य वाणी का संकलन ‘सहज साधना’ सत्साहित्य में है ।
इस सत्साहित्य में है :
* ईश्वरीय विधान एवं सहज साधना क्या है ?
* पुण्य क्या है ? पाप क्या है ?
* आप क्या चाहते हैं - उन्नति या अवनति ?
* ...तो सहज साधना हो जायेगी
* स्वामी विवेकानंदजी की सहज-साधना
* परम शांति का प्रस्थान-बिंदु : श्रद्धा
* सनातन सत्य क्या है ?
* भगवान अनूठी लीला
* वेदांत का सत्संग-प्रसाद
* क्या है व्यावहारिक वेदांत ?
* सेवाभगत और मेवाभगत
* मोह-मुद्गर : आत्मविचार (रोचक प्रसंग)
* ध्यान-प्रसाद
* ...तो तुमने कुछ नहीं किया
* मृत्यु के झटके से पहले सावधान !
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