
सामर्थ्य स्रोत
आत्मा-परमात्मा विश्व के सारे बलों का स्रोत है । सारे सुखों का मूल कारण आत्मा है । सारे ज्ञानों का मूल उद्गम स्थान आत्मा है । सारे सामर्थ्य का मूल स्रोत आत्मा है । सामर्थ्य-स्रोत परमात्मा का अथाह सामर्थ्य मनुष्य के भीतर सुषुप्तरूप में पड़ा हुआ है । संतों-महापुरुषों के मार्गदर्शन से सुषुप्त शक्तियों को जगाकर मनुष्य अथाह सामर्थ्य का धनी बन सकता है । जिन्होंने अपनी सुषुप्त शक्तियों को जगाया वे महान हुए और इतिहास के पन्नों में अमिट हो गये । पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की आत्मरस से तृप्त वाणी को ‘सामर्थ्य स्रोत’ सत्साहित्य में संकलित किया गया है । इसका पठन-चिंतन-मनन सारी शक्तियों के केन्द्रस्थान आत्मा की अंतर-यात्रा की ओर प्रेरित करता है ।Ÿ 'सामर्थ्य स्रोत' पुस्तक में है :
* राजा चक्ववेण के मंत्री का सामर्थ्य और रावण की विवशता
* उत्तम-से-उत्तम भूषण क्या है ?
* उत्तम-से-उत्तम तीर्थ क्या है ?
* जगत में त्यागने योग्य क्या है ?
* हमेशा सुनने योग्य क्या है ?
* शील गया तो सब गया
* चतुराई चूल्हे पड़ी...
* गीता से आत्मज्ञान पाया
* पाँच आश्चर्य
* आठ पापों का घड़ा
* पापी मनुष्य की पहचान क्या है ?
* विधेयात्मक जीवनदृष्टि
* कौन-सी तीन चीजें दुर्लभ हैं ?
* गीता में मधुर जीवन का मार्ग
* पाँच रुपये और गधा
* चूहे का पुरुषार्थ
* कच की सेवा-भावना
* ऐसी सेवा गुरु के हृदय को जीत लेती है
* पार्वतीजी की पुत्री ओखा की शादी
* घोड़ी गयी... हुक्का रह गया
* रातभर नाव चलायी लेकिन पहुँचा कहीं नहीं
* युक्ति से कामनाओं को मोड़ो
* स्वामी विवेकानंद और नर्तकी
* गांधारी और श्रीकृष्ण
* मेधावी बालक : शंकर
* सुख एवं सामर्थ्य का स्रोत अपने-आपमें
* अनेक प्रकार के कथा-प्रसंग एवं और भी बहुत कुछ...
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