
समता साम्राज्य
समता एक दैवी गुण, एक बड़ी साधना है, जिसके विषय में भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है : ‘...समत्वं योग उच्यते ।’ अर्थात् समत्वभाव ही योग है । जिसने अपने जीवन में समता का गुण विकसित कर लिया वह हर क्षेत्र में सफल हो जायेगा । सत्संग से विवेक जगता है । विवेक से समता आती है । समता ही परमात्मप्राप्ति का सुंदर-में-सुंदर और सहज साधन है । अपने दैनिक व्यवहार में आनेवाले सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता के सिर पर पैर रखकर अमरता के अनुभव में, समता के सिंहासन पर विराजें... इसी भावना से संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग-अमृत को ‘समता साम्राज्य’ पुस्तक में लिपिबद्ध किया गया है ।
सबसे ऊँची, सबसे सरल और जो कहीं भी की जा सके ऐसी ‘समत्वयोग’रूपी साधना हेतु आपको न हिमालय जाना है, न जंगल जाना है, न घर-परिवार, नौकरी-धंधा छोड़ना है अपितु चलते-फिरते, खाते-पीते, लेते-देते, संसार का सब व्यवहार करते हुए भी हर कोई इस अद्भुत साधना में सिद्धि पा सकता है, कैसे ? पढ़ें इस पुस्तक में ।
‘समता साम्राज्य’ सत्साहित्य में है :
* समता के साम्राज्य पर कैसे आरूढ़ हों ?
* व्यवहार में कुशलता क्या है ?
* क्या है डेढ़ पुण्य और डेढ़ पाप ?
* भक्त का मतलब क्या ?
* महान वीरों का विजयी होने का कारण क्या है ?
* हर परिस्थिति में चित्त की समता कैसे बनायें रखें ?
* आपके पास कल्पवृक्ष है
* तीन सूत्र - इनसे छोटे-से-छोटा आदमी भी महान हो सकता है
* राग-द्वेष की निवृत्तिरूप अभ्यासयोग
* ब्रह्माकार वृत्ति बनाओ... पार हो जाओ
* महर्षि ऋभु और निदाघ
* भगवन्नाम की महिमा
* बलि के पूर्वजन्म की कथा
* बुद्ध और विश्वसुंदरी का प्रसंग
* गाँधीजी की सहनशक्ति
* योगिनी कर्मावती
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