
संतमाता माँ महँगीबाजी के मधुर संस्मरण
ब्रह्मवेत्ता महापुरुष पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की जन्मदात्री माँ जिन्हें सब स्नेह से ‘अम्माजी’ के नाम से जानते हैं, उन पूजनीया अम्माजी के जीवन-आदर्शों को अपनाकर समाज उन्नत हो सके, इस उद्देश्य से अम्माजी के गुणों को शब्दों में पिरोने का एक लघु प्रयास है पुस्तक ‘संतमाता माँ महँगीबाजी के मधुर संस्मरण’ ।
शिष्टाचार, सद्गुरु के प्रति भक्ति और प्रेम, गुरुआज्ञा-पालन की सम्पूर्ण सहर्ष तैयारी, निष्कामता, निरभिमानिता, धैर्य, सहनशीलता, आदर्श गृहस्थ-जीवन, बाल्यकाल से बच्चों को उच्चतम संस्कारों से सम्पन्न बनाने की कला आदि अनेक दैवी गुण पूजनीया अम्माजी के जीवन में देखने को मिले । अम्माजी के गुणों को उजागर करनेवाले छोटे-छोटे प्रसंगों से युक्त इस पुस्तक के अध्ययन से गुरुभक्तों को गुरुभक्ति, भगवद्भक्तों को भगवद्भक्ति, प्रेम व शिष्टाचार, माताओं-बहनों को पारिवारिक जीवन में जीने की कला एवं आध्यात्मिक उन्नति तथा समाज के हर वर्ग के लिए अनुकरणीय उपयोगी सीख मिलेगी ।
इसमें वर्णित है :
* कैसा दिव्य था पूजनीया माँ महँगीबाजी का जीवन !
* अम्माजी के जन्म, बाल्यकाल, विवाह एवं पूज्यश्री के अवतरण से जुड़े पावन-प्रसंग
* पहले गुरु बन के बेटे को भक्ति का रंग लगाया, बाद में बेटे को गुरु बनाकर आत्मज्ञान पाया
* कोमल हृदय पुत्र में कैसे किया माँ ने भगवद्विश्वास के सुसंस्कारों का सिंचन ?
* देश-विभाजन में अपार धन-सम्पदा का छूटना एवं कुछ ही समय बाद पतिदेव की संसार से विदाई
* पति-पत्नी, भाई-भाई, मित्र-मित्र अभी से लेनदेन कैसे चुकायें कि जिससे कर्मबंधन में पड़कर न आना पड़े ?
* नन्हे बालक में संतत्वप्राप्ति के संकल्प का उदय व लक्ष्यसिद्धि हेतु गृहत्याग
* कैसी अनन्य थी अम्माजी की गुरुभक्ति !
* कैसा अनूठा वार्तालाप वे पूज्यश्री से करती थीं !
* निष्काम कर्मयोग का आदर्श अम्माजी
* कैसे पायी थी अम्माजी ने ब्रह्मज्ञान में स्थिति ?
* माउंट आबू की नल गुफा में कैसे बरसी अम्मा पर गुरुकृपा ?
* कुछ मधुर संस्मरण स्वयं पूज्य बापूजी के श्रीवचनों में
- ‘ऐसी थीं मेरी माँ !’
- इच्छाओं से परे : माँ महँगीबाजी
- जीवन में कभी फरियाद नहीं...
- बीमारों के प्रति माँ की करुणा
- कोई कार्य घृणित नहीं है...
- जब आया समय चिरविदाई, तब भी अम्मा ने गुरु आज्ञा-निभायी
* अम्माजी के जीवन में गुरुवचन माने एक व्रत, एक नियम
* अम्माजी में माँ यशोदा जैसा भाव
* मानो उनकी अपनी ही बेटी की शादी हो !
* प्रकृति के साथ तादात्म्य
* ‘बस ! यही एक सार है...’
* मधुर विरह व्यथा
* विनोद-विनोद में ब्रह्मज्ञान
* ऐसी माँ के लिए शोक किस बात का ?
* अम्मा के महाप्रयाण पर मान्यवरों के उद्गार
* अमर रहेगा तेरा नाम (भजन)
* माँ ब्रह्म तेरे घर आयो (भजन)
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