
सत्संग अमृत
मनुष्य का जन्म धरती पर इसलिए होता है कि वह अपने आत्मस्वरूप को पहचान ले और अपने आत्मिक आनंद का अनुभव कर ले । इसी आनंद की अनुभूति के लिए वह बाहर भागता फिरता है और उसे प्राप्त करने के लिए जिन-जिन सहारों को वह हीरा समझकर पकड़ता है, हाथ में आते ही वे पत्थर सिद्ध हो जाते हैं । संयोगवशात् ही उसको कोई स्थान मिलता है जो उसके व्यथित, थके हुए हृदय को शांति और शीतलता का अनुभव करा पाये और वह स्थान है - 'ब्रह्मवेत्ता महापुरुषों का सत्संग' । सत्संग तार देता है, कुसंग डुबो देता है ।
संत-दर्शन, संतसेवा और सत्संग का फल क्या होता है ? जीवन को उन्नत बनाने की कैसी-कैसी कलाएँ सत्संग से सीखने को मिलती हैं... आदि विषयों का सुंदर विवेचन पूज्य संत श्री आशारामजी बापू की अमृतवाणी से संकलित कर ‘सत्संग अमृत’ पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है । इस पुस्तक में है :
* आद्य शंकराचार्यजी बताते हैं - जगत में तीन दुर्लभ चीजें कौन-सी ?
* संतसेवा का फल खोजने निकले संत तैलंग स्वामी
* दासी पुत्र कैसे बन गये देवर्षि नारदजी ?
* भाभी की बात की मार, संत-कृपा का चमत्कार, युवक हो गया भव-पार
* संतकृपा का चमत्कार, गायें चरानेवाला बना काव्य-रचनाकार
* एक तमाचे की करामात, बन गयी डिप्टी कलेक्टर की बात
* ऊँची समझ
* नाव पानी में रहे, पानी नाव में नहीं...
* सत्संग की महिमा का चमत्कार, गिरगिट राजपुत्र हो पहुँचा राजदरबार
* क्या जादू है तेरे प्यार में !
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