
सत्संग सुमन
हर मनुष्य चाहता है कि वह स्वस्थ रहे, समृद्ध रहे और सदैव आनंदित रहे, उसका कल्याण हो । मनुष्य का वास्तविक कल्याण यदि किसी में निहित है तो वह केवल सत्संग में ही है । सत्संग जीवन का कल्पवृक्ष है । गोस्वामी तुलसीदासजी ने कहा हैः
बिनु सत्संग विवेक न होई राम कृपा बिनु सुलभ न सोई ।
सतसंगत मुद मंगल मूला सोई फल सिचि सब साधन फूला ।।
'सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और श्रीरामजी की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में नहीं मिलता । सत्संगति आनंद और कल्याण की नींव है । सत्संग की सिद्धि यानी सत्संग की प्राप्ति ही फल है । और सब साधन तो फूल हैं ।'
सत्संग की महत्ता का विवेचन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास आगे कहते हैं-
एक घड़ी आधी घड़ी आधी में पुनि आध ।
तुलसी संगत साधु की हरे कोटि अपराध ।।
आधी से भी आधी घड़ी का सत्संग यानी साधु संग करोड़ों पापों को हरने वाला है । अतः
करिये नित सत्संग को बाधा सकल मिटाय ।
ऐसा अवसर ना मिले दुर्लभ नर तन पाय ।।
हम सबका यह परम सौभाग्य है कि हजारो-हजारों, लाखों-लाखों हृदयों को एक साथ ईश्वरीय आनन्द में सराबोर करने वाले, आत्मिक स्नेह के सागर, वेदान्तनिष्ठ सत्पुरूष पूज्यपाद संत श्री आसारामजी बापू सांप्रत काल में समाज को सुलभ हुए हैं ।
आज के देश-विदेश में घूमकर मानव समाज में सत्संग की सरिताएँ ही नहीं अपितु सत्संग के महासागर लहरा रहे हैं । उनके सत्संग व सान्निध्य में जीवन को आनन्दमय बनाने का पाथेय, जीवन के विषाद का निवारण करने की औषधि, जीवन को विभिन्न सम्पत्तियों से समृद्ध करने की सुमति मिलती है । इन महान विभूति की अमृतमय योगवाणी से ज्ञानपिपासुओं की ज्ञानपिपासा शांत होती है, दुःखी एवं अशान्त हृदयों में शांति का संचार होता है एवं घर संसार की जटिल समस्याओं में उलझे हुए मनुष्यों का पथ प्रकाशित होता है ।
ऐसे हृदयामृत का पान कराने वाले पूज्यश्री की निरन्तर सत्संग-वर्षा से कुछ बिन्दू संकलित करके लिपिबद्ध आपके करकमलों में प्रस्तुत है ।
ऋषियों की यह पावन वाणी तर जाते जिससे सब प्राणी ।
गुरूवर के अनमोल वचन प्रस्तुत यह 'सत्संग सुमन' ।।
महिला उत्थान ट्रस्ट, अहमदाबाद
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