
श्राद्ध महिमा(Shraddh Mahima)
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भारतीय संस्कृति की एक बड़ी विशेषता है कि जीते-जी तो विभिन्न संस्कारों के द्वारा, धर्मपालन के द्वारा मानव को समुन्नत करने के उपाय बताती ही है लेकिन मरने के बाद भी, अत्येष्टि संस्कार के बाद भी जीव की सदगति के लिए किये जाने योग्य संस्कारों का वर्णन करती है।
मरणोत्तर क्रियाओं-संस्कारों का वर्णन हमारे शास्त्र-पुराणों में आता है। आश्विन(गुजरात-महाराष्ट्र के मुताबिक भाद्रपद) के कृष्ण पक्ष को हमारे हिन्दू धर्म में श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है। श्राद्ध की महिमा एवं विधि का वर्णन विष्णु, वायु, वराह, मत्स्य आदि पुराणों एवं महाभारत, मनुस्मृति आदि शास्त्रों में यथास्थान किया गया है। उन्हीं पर आधारित पूज्यश्री के प्रवचनों को प्रस्तुत पुस्तक में संकलित किया गया है ताकि जनसाधारण 'श्राद्ध महिमा' से परिचित होकर पितरों के प्रति अपना कर्त्तव्य-पालन कर सके।
दिव्य लोकवासी पितरों के पुनीत आशीर्वाद से आपके कुल में दिव्य आत्माएँ अवतरित हो सकती हैं। जिन्होंने जीवन भर खून-पसीना एक करके इतनी साधन-सामग्री व संस्कार देकर आपको सुयोग्य बनाया उनके प्रति सामाजिक कर्त्तव्य-पालन अथवा उन पूर्वजों की प्रसन्नता, ईश्वर की प्रसन्नता अथवा अपने हृदय की शुद्धि के लिए सकाम व निष्काम भाव से यह श्राद्धकर्म करना चाहिए।
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