
श्री आशारामायण
निवेदन
तत्त्वज्ञ महापुरुषों का सान्निध्य बड़ा दुर्लभ है । कबीरदासजी कहते हैं-
सुख देवें दुःख दूर करें, करें पाप का अन्त ।
कह कबीर वे कब मिलें, परम स्नेही संत ।।
संत मिले यह सब मिटे, काल जाल जम चोट ।
सीस नमावत ढही पड़े, सब पापन की पोट ।।
ऐसे महापुरुषों के आगे जिन्हें अपने अहंकाररूपी शीश के झुकाने का सौभाग्य मिल जाता है, वे धन्य हो उठते हैं । स्थूल देहरूप में अवतरित ऐसे परमात्म-पुरुष को कोई भाग्यशाली ही पहचान पाते हैं । लोग परमात्मा को ढूँढने जाते हैं और परमात्मा इन आँखों से कहीं नज़र नहीं आता, क्योंकि वह अगम्य है । निराश मनुष्य फिर क्या करें ? उस अलख को कैसे जानें ? कैसे देखें?कबीरजी ने इस पहेली का सुन्दर हल पेश करते हुए कहा है-
अलख पुरुष की आरसी, साधु का ही देह ।
लखा जो चाहे अलख को, इन्हीं में लख लेह ।।
हे मानव ! यदि तुझे उस अलख को लखना हो, जो जानने से परे है उसे जानना हो, जो देखने से परे हैं उसे देखना हो, तो तू ऐसे किसी संत-महापुरुष को देख ले, क्योंकि उन्हीं में वह अपने पूर्ण वैभव के साथ प्रकट हुआ है ।
ऐसे महापुरुष संसाररूपी मरुस्थल में त्रिविध तापों से तप्त मानव के लिए विशाल वटवृक्ष हैं, शीतल जल के झरने हैं । उनकी पावन देह को स्पर्श करके आने वाली हवा भी जीव के जन्म-जन्मान्तरों की थकान को उतार कर उसके हृदय को आत्मिक शीतलता से भर देती है । ऐसे महापुरुष की महिमा गाते-गाते तो वेद और पुराण भी थक चुके हैं ।
ऐसे ही एक जीवन्त महापुरुष की पद्यमय संक्षिप्त गाथा को यहाँ जिज्ञासु हृदयों के समक्ष प्रस्तुत किया गाया है ।
इस दिव्य शीतल अमृतमय झरने में नहाएँ.... अपने जन्म-जन्मान्तरों के पापों को धोयें.... थकान को उतारें और अपने परम लक्ष्य के पथ को पार करें ।
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