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Daivi Sampada : Hindi [दैवी संपदा]

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पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने अपने सत्संगों में दैवी सम्पदा के इन सद्गुणों पर बड़ी ही सरल, रसप्रद व हृदयस्पर्शी व्याख्या की है । दैवी सम्पदा के इन 26 सद्गुणों को धारण करने से सुख-शांतिमय, आनंदमय जीवन जीने की कला आती है, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – ये चारों पुरुषार्थ सहज में ही सिद्ध हो जाते हैं । इस पुस्तक में दैवी सम्पदा में स्थित भक्तों-संतों के जीवन-प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला गया है ।

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दैवी सम्पदा
जितने भी दुःख-दर्द, पीड़ाएँ हैं, चित्त को क्षोभ करानेवाले… जन्मों में भटकानेवाले… अशांति देनेवाले कर्म हैं वे सब सद्गुणों के अभाव में ही होते हैं । दैवी सम्पदा के 26 सद्गुणों को भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता के सोलहवें अध्याय में बताया है । पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने अपने सत्संगों में दैवी सम्पदा के इन सद्गुणों पर बड़ी ही सरल, रसप्रद व हृदयस्पर्शी व्याख्या की है । दैवी सम्पदा के इन 26 सद्गुणों को धारण करने से सुख-शांतिमय, आनंदमय जीवन जीने की कला आती है, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष – ये चारों पुरुषार्थ सहज में ही सिद्ध हो जाते हैं । इस पुस्तक में दैवी सम्पदा में स्थित भक्तों-संतों के जीवन-प्रसंगों पर भी प्रकाश डाला गया है ।
इसमें है :
* सुख-दुःख का कारण क्या है ?
* जीवन में निर्भयता क्यों आवश्यक है और वह कैसे पायी जा सकती है ?
* निर्भयता का मतलब नककटा होना, गुलाम होना नहीं… !
* दैवी सम्पदावान के लक्षण
* जो हिम्मतवान है उसकी मदद परमात्मा भी करते हैं
* दुर्वासा जैसे ऋषि क्रोधी होकर भी दैवी सम्पदावान कैसे ?
* सत्यनिष्ठा से घर में हुआ संत का अवतरण
* भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणीजी दोनों को किसने और क्यों रथ में जोतकर उस रथ पर सवारी की ?
* दिव्य जीवन बनाने के लिए क्या करें ?
* साधक को कैसा होना चाहिए ?
* व्यवहार में दक्षता कैसे आये ?
* सर्वांगीण विकास में कैसे सहायक हैं दैवी गुण ?
* बेईमान व्यक्ति भी क्यों ईमानदार साथी चाहता है ?
* फाँसी के तख्त पर खड़े व्यक्ति ने अपनी ही माँ की नाक दाँतों से क्यों काट डाली ?
* उन्नति में सबसे बड़ी खाई लापरवाही… कैसे ?
* जीवन से आसक्ति कैसे मिटायें ?
* कवि ने राजा को मनपसंद कविता सुनायी, पुरस्कार में हुई जूतों से धुलाई
* कर्म को कर्मयोग में कैसे परिणत करें ?
* जिनसे सुख लेता था उनकी हालत देखकर राजा को जगा वैराग्य
* जब ब्रह्माजी के वहाँ हुआ देवों-दानवों का भोज-समारोह
* भगवत्पाद साँईं श्री लीलाशाहजी महाराज का भगवान के साथ विनोद
* यमराज का डिपार्टमेंट कैसे चलता है ?
* गुर बिनु भव निधि तरइ न कोई
* ब्रह्मज्ञानी सद्गुरु का संग-त्याग मृत्यु समान
* सफलता की नींव : एकाग्रता
* भक्तिमति रानी रत्नावती

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Net Weight (after packaging) 130 g

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