Karm Ka Akaatya Siddhant : Hindi [कर्म का अकाट्य सिद्धांत]

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कर्मबंधन से बचकर परमात्म-पद को कैसे पायें – इस बारे में पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने बड़े ही सुंदर व सरल ढंग से अपने सत्संगों में मार्गदर्शन दिया है । उनके अमृतवचनों का संग्रह है पुस्तक ‘कर्म का अकाट्य सिद्धांत’ ।

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कर्म का अकाट्य सिद्धांत
कर्म का अकाट्य सिद्धांत राजा हो या रंक, सेठ हो या नौकर या अवतार लेकर आये भगवान – सभीको स्वीकार करना पड़ता है । अतः हमें कर्म करने में ही सावधान रहना चाहिए । कर्म ऐसे करें कि कर्म विकर्म न बनें, दूषित या बंधनकारक न बनें, वरन् अकर्म में बदल जायें, कर्ता अकर्ता हो जाय और अपने परमात्म-पद को पा ले । कर्मबंधन से बचकर परमात्म-पद को कैसे पायें – इस बारे में पूज्य संत श्री आशारामजी बापू ने बड़े ही सुंदर व सरल ढंग से अपने सत्संगों में मार्गदर्शन दिया है । उनके अमृतवचनों का संग्रह है पुस्तक ‘कर्म का अकाट्य सिद्धांत’ ।
इसमें है :
* कर्म की गति गहन है इस बात को समझाती हुई सत्य घटनाएँ
* अपने कर्म को बंधनरहित बनाने का उपाय
* धोखा देकर मारे गये मित्र का बदला किस प्रकार चुकाना पड़ा ?
* होनी तो होकर ही रहती है – इस रहस्य को समझानेवाला रावण द्वारा कौशल्याजी के हरण का प्रसंग
* इधर पीपल गिरा, उधर बेटा मरा (पीपल-वृक्ष काटने का दुष्परिणाम)
* पुजारी को क्यों बनना पड़ा प्रेत ?
* संत की अवहेलना का दुष्परिणाम
* तीन जन्मों के बाद सर्प की योनि में आकर भी चुकाना पड़ा कर्ज
* वहाँ देकर छूटे तो यहाँ फिट हो गये ?
* किसी भी अशुभ कर्म, पापकर्म का फल भोगना ही पड़ता है, कैसे ?
* सुलेमान प्रेत ने बताया अपने प्रेत होने का कारण और कुम्भीपाक नरक का आँखों देखा हाल
* कर्म करने में सावधानी क्यों हो व कैसी हो ?
* जहाँ आसक्ति वहाँ जन्म होता है
* क्या रिश्ते मृत्यु के साथ मिट जाते हैं ?
* सच ही है कि शुभ कर्म व्यर्थ नहीं जाते
* कर्म का फल तो भोगना ही पड़ता है
* 73 जन्मों के बाद भी कर्म का फल भोगना पड़ा

Additional information

Net Weight (after packaging) 50 g

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