मधुर व्यवहार
शास्त्रों का उद्देश्य है – अपना और दूसरों का जीवन मधुमय, प्रभुमय, आत्मानंदमय बनाना । प्रेम, सहानुभूति, सम्मान, मधुरवचन, परहितएवंत्याग-भावना आदि से ही आप हर किसीको सदा के लिए अपना बना सकते हो । जिसके जीवन में व्यवहार कुशलता है वह सभी क्षेत्रों में सफल होता है । वाणी व कर्म के द्वारा व्यावहारिक कुशलता को विकसित करने की शास्त्र वर्णित युक्तियाँ व पूज्य संत श्री आशारामजी बापू के अमृत-वचनों से संकलित है पुस्तक ’मधुरव्यवहार’। इस पुस्तक के अध्ययन-अनुसरण से विद्यार्थी सबका प्रिय पात्र बन जायेगा, व्यापारी व्यापार में कुशल बनेगा, पति-पत्नी, सासु-बहू, भाई-भाई, पिता-पुत्र, पड़ोसी-पड़ोसी का आपसी मनमुटाव, झगड़ेमिटजायेंगे… परिवार में, समाज में स्वर्गीय वातावरण छा जायेगा ।
इसमें है :
* सफल जीवन की कुंजी
* मीठी और हितभरी वाणी का अद्भुत प्रभाव
* कड़वी और अहितकारी वाणी है अभिशाप
* किस प्रकार की बात किस समय करें ?
* किसी का दिल मत तोड़ना क्योंकि उसमें दिलबर परमात्मा खुद रहता है
* अपनी बातको किस ढंगसे कहें कि लोगों पर उसका प्रभाव पड़े ?
* पति-पत्नी का व्यवहार कैसा हो कि घर बने मधुवन ?
* पिता-पुत्र का व्यवहार कैसा हो ?
* दुकानदार का व्यवहार कैसा हो कि संतुष्ट रहें ग्राहक ?
* मालिक-सेठ का व्यवहार कैसा हो कि प्रसन्नर हें नौकर ?
* घर-ऑफिस, समाज में अपने साथ काम करनेवालों से कैसा हो व्यवहार ?
* कटु वाणी का प्रयोग है भयंकर, जो देता है विफलता
* बातचीत करने का सही ढंग
* दक्ष नेतृत्व की क्या है पहचान ?
* घर-परिवार, समाज, राज्य व राष्ट्र के कुशल नेतृत्व के गुण
* कलजुग नहीं कर जुग है यह (काव्य)
* ऐसे सजगतापूर्वक करें वाणी का प्रयोग
* वाणी के इन पापों को जानें व इनसे बचें
* ध्यान देने योग्य बहुत आवश्यक बातें
* हरदिल को स्नेह, सहानुभूति, प्रेम एवं आदर की आवश्यकता है और जो इसे दे सकता है वह सबको अपना बना लेता है
* कुशल मैनेजर, समाज के आगेवान, घर-गाँव के मुखिया या एक सफल नागरिक बनना है तो इस पुस्तक को अवश्य अमल में लायें…
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