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नीम के औषधीय प्रयोग :
नीम के पत्तेः
- स्वप्नदोषः 10 मि.ली. नीम-पत्तों के रस या नीम अर्क में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला के पियें ।
- रक्तशुद्धि व गर्मीशमन हेतु: सुबह खाली पेट 15-20 नीम-पत्तों का सेवन करें ।
फूल व फलः
- पेट को रोगों से सुरक्षाः नीम के फूल तथा पकी हुई निबौलियाँ खाने से पेट के रोग नहीं होते ।
नीम तेलः
- चर्मरोग व पुराने घाव में- नीम का तेल लगायें व इसकी 5-10 बूंदें गुनगुने पानी से दिन में दो बार लें।
- गठिया व सिरदर्द में- प्रभावित अंगों पर नीम-तेल की मालिश करें ।
- जलने परः आग से जलने से हुए घाव पर नीम-तेल लगाने से शीघ्र भर जाता है ।
- पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त : पत्तियों का १० – २० मि.ली. रस शहद के साथ दिन में २ बार लेने से पीलिया, रक्ताल्पता व रक्तपित्त (नाक, योनि, मूत्र आदि द्वारा रक्तस्त्राव होना ) में आराम मिलता हैं | पेट के कृमि नष्ट होते हैं |
- दाँतो की सुरक्षा : नीम की दातुन दाँतों को चमकीला, स्वस्थ तथा मजबूत बनाती है व मुँह की दुर्गन्ध मिटाती है | यह निरंतर करने से दाँतों में कभी कीड़े नहीं लगते और अधिक उम्र तक दाँत मजबूत बने रहते हैं | मसूड़े भी स्वस्थ रहते हैं |
- घाव : नीम का तेल लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं |
- अरुचि : नीम के पत्ते चबाकर खाने से अरुचि दूर होती है |
- पेट के कीड़े : १५ नीम की पत्तियाँ हींग के साथ खाने से या नीम की पत्तियों का रस ३ काली मिर्च के साथ सुबह पीने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं |
- गर्मी होने पर : नीम की पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह – शाम पीने से अति तीव्र जलन भी शांत हो जाती है
- हाथ – पैर की जलन में : नीम के पत्तों को पीसकर तलवों पर लेप करने से हाथ – पैर की जलन मिट जाती है |
- पकी हुई १० निबौलियाँ रोज खायें |इससे रक्त की शुद्धि होती है तथा भूख भी खुलकर लगती है | यह बवासीर – नाशक है व पेट के सभी विकारों में लाभकारी है | २१ दिन तक यह प्रयोग करने से रक्त-विकार, मंदाग्नि और पित्तप्रकोप दूर होते हैं |
- नीम के फूलों का रस शीत व रक्तशुद्धिकर है | १० से २० मि.ली. रस पीने से फोड़े – फुंसियों में शीघ्र राहत मिलती है | चैत्र महीने में १५ दिन तक नीम के फूलों का रस पीने से वर्षभर रोगप्रतिकारक शक्ति बनी रहती है |
- १० – १० ग्राम निबौली व अदरक तथा थोड़े तुलसी – पत्ते एवं काली मिर्च लेकर चटनी बना लें | पेट के विकारों में यह लाभदायी है |
विशेष : नीम के रस के स्थान पर ‘नीम अर्क’ का भी उपयोग कर सकते हैं | ( यह सभी संत श्री आशारामजी आश्रमों व समितियों के सेवाकेन्द्रों में उपलब्ध है |)
स्रोत – लोक कल्याण सेतु – मार्च २०१६ से
ऋषि प्रसाद, मार्च 2019, पृष्ठ संख्या 31 अंक 315
Ingredients – सामग्री
- Each 10 ml contains:
- Neem (Azadirachta Indica): 2.5 ml
- Water: Q.S.
Neem Ark Benefits in Hindi [Neem Ark ke Fayde]
- आयुर्वेद के अनुसार नीम शीतल, पचने में हलका, कफ पित्तशामक व थकान, प्यास, खाँसी, बुखार, अरूचि, कृमि, घाव, उलटी, जी मिचलाना, प्रमेह (मूत्र-संबंधी रोगों) आदि को दूर करने वाला है ।
- नीम के पत्तों से बना यह अर्क रक्त को शुद्ध करनेवाली बहुमूल्य औषधि है।
- यह दाद, खाज, खुजली, कील, मुँहासे तथा पुराने त्वचाविकारों में अत्यंत लाभदायी है।
- यह उत्तम कृमिनाशक, दाह व पित्त शामक है। पीलिया, पांडु, रक्तपित्त, अम्लपित्त, उलटी, प्रमेह, विसर्प (हर्पीज़) व लीवर के रोगों को दूर करनेवाला है।
- यह बालों को झड़ने से रोकता है। रक्तप्रदर, गर्भाशय शोथ, खूनी बवासीर और आँखों के रोगों में भी लाभदायक है।
- स्वप्नदोष में 10 मि.ली. नीम अर्क में 2 ग्राम रसायन चूर्ण मिला के पियें।
- गर्मी होने पर नीम अर्क में मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सुबह – शाम पीने से अति तीव्र जलन भी शांत हो जाती है।
- नीम अर्क पीने से अरुचि दूर होती है।
- चर्मरोग में ५ लीटर पानी में ५० मि.ली. अर्क मिलाकर स्नान करें। १५ दिन तक ही इसका नियमित सेवन करें। तत्पश्चात् ४-५ दिन बंद करके पुनः ले सकते हैं।
How To Use Neem Ark – उपयोग विधि [Kaise Upyog Kare] – Dosage
- १० से ३० मि.ली. अर्क (बालकों हेतु २ से ५ मि.ली.) समभाग पानी मिलाकर दिन में २ बार लें।
- नीम का वृक्ष प्राणदायक, आरोग्यवर्धक और रोगनाशक माना गया है | नीम सड़नरोधी (Antiseptic) का काम करता है | नीम का तेल जीवाणुरोधी कार्य करता है । नीम के पत्ते नेत्रहितकर तथा विषनाशक होते हैं |
- नीम के कोमल पत्ते खाने से मधुमेह ( डायबिटीज ) के नियन्त्रण में भी मदद मिलती है |
- इसके पानी से पोंछा लगाने, पत्तियों का धुआँ करने, बंदनवार ( तोरण ) लगाने से घर का वातावरण शुद्ध व संक्रमणरहित बनता है एवं मक्खी – मच्छर व रोग के कीटाणु भाग जाते हैं |
Precaution – सावधानी
- अर्क की बोतल के तल में कुछ अवक्षेप या तलछट (sediment) पाये जा सकते हैं। इसलिए बोतल को हिलाये बिना ही औषधि का सेवन करें तथा अंत में १० मि.ली. अवशिष्ट भाग छोड़ दें।
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