
गीता प्रसाद
निवेदन
श्री वेदव्यास ने महाभारत में गीता का वर्णन करने के उपरान्त कहा हैः
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिः सुता ।।
'गीता सुगीता करने योग्य है अर्थात् श्री गीता को भली प्रकार पढ़कर अर्थ और भाव सहित अंतःकरण में धारण कर लेना मुख्य कर्तव्य है, जो कि स्वयं श्री पद्मनाभ विष्णु भगवान के मुखारविन्द से निकली हुई है, फिर अन्य शास्त्रों के विस्तार से क्या प्रयोजन है ?'
गीता सर्वशास्त्रमयी है। गीता में सारे शास्त्रों का सार भार हुआ है। इसे सारे शास्त्रों का खजाना कहें तो भी अत्युक्ति न होगी । गीता का भलीभाँति ज्ञान हो जाने पर सब शास्त्रों का तात्त्विक ज्ञान अपने आप हो सकता है। उसके लिए अलग से परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं रहती ।
वराहपुराण में गीता का महिमा का बयान करते-करते भगवान ने स्वयं कहा हैः
गीताश्रयेऽहं तिष्ठामि गीता मे चोत्तमं गृहम्।
गीताज्ञानमुपाश्रित्य त्रींल्लोकान्पालयाम्यहम्।।
'मैं गीता के आश्रय में रहता हूँ। गीता मेरा श्रेष्ठ घर है । गीता के ज्ञान का सहारा लेकर ही मैं तीनों लोकों का पालन करता हूँ ।'
श्रीमद् भगवदगीता केवल किसी विशेष धर्म या जाति या व्यक्ति के लिए ही नहीं, वरन् मानवमात्र के लिए उपयोगी व हितकारी है । चाहे किसी भी देश, वेश, समुदाय, संप्रदाय, जाति, वर्ण व आश्रम का व्यक्ति क्यों न हो, यदि वह इसका थोड़ा-सा भी नियमित पठन-पाठन करें तो उसे अनेक अनेक आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगते हैं ।
गीता का परम लक्ष्य है मानवमात्र का कल्याण करना । किसी भी स्थिति में इन्सान को चाहिए कि वह ईश्वर-प्राप्ति से वंचित न रह जाए क्योंकि ईश्वर की प्राप्ति ही मनुष्य जीवन का परम उद्देश्य है लेकिन भ्रमवश मनुष्य भौतिक सुख-सुविधाओं के वशीभूत होकर नाना प्रकार से अपनी इन्द्रियों को तृप्त करने के प्रयासों में उलझ जाता है और सिवाय दुःखों के उसे अन्य कुछ नहीं मिलता । भगवद् गीता इसी भ्रम-भेद को मिटाकर एक अत्यधिक सरल, सहज व सर्वोच्च दिव्य ज्ञानयुक्त पथ का प्रदर्शन करती है । गीता के अमृतवचनों का आचमन करने से मनुष्य को भोग व मोक्ष दोनों की ही प्राप्ति होती है ।
कनाडा के प्राइम मिनिस्टर मि. पीअर ट्रुडो ने जब गीता पढ़ी तो वे दंग रहे गये । मि. पीअर. ट्रुडो ने कहाः
"मैंने बाइबिल पढ़ी, एंजिल पढ़ा, और भी कई धर्मग्रन्थ पढ़े। सब ग्रन्थ अपनी-अपनी जगह पर ठीक हैं लेकिन हिन्दुओं का यह श्रीमद् भगवद गीता रूपी ग्रन्थ तो अदभुत है ! इसमें किसी भी मत-मजहब, पंथ, संप्रदाय की निंदा स्तुति नहीं है बल्कि इसमें तो मनुष्यमात्र के विकास की बात है । शरीर स्वस्थ, मन प्रसन्न और बुद्धि में समत्व योग का, ब्रह्मज्ञान का प्रकाश जगानेवाला ग्रन्थ भगवद् गीता है... गीता केवल हिन्दुओं का ही धर्मग्रन्थ नहीं है, मानवमात्र का धर्मग्रन्थ है । Geeta is not the Bible of Hindus, but it is the Bible of humanity."
गीता में ऐसा उत्तम और सर्वव्यापी ज्ञान है कि उसके रचयिता को हजारों वर्ष बीत गये हैं किन्तु उसके बाद दूसरा ऐसा एक भी ग्रन्थ आज तक नहीं लिखा गया है । 18 अध्याय एवं 700 श्लोकों में रचित तथा भक्ति, ज्ञान, योग एवं निष्कामता आदि से भरपूर यह गीता ग्रन्थ विश्व में एकमात्र ऐसा ग्रन्थ है जिसकी जयंती मनायी जाती है ।
गीता मानव में से महेश्वर का निर्माण करने की शक्ति रखती है । गीता मृत्यु के पश्चात नहीं, वरन् जीते-जी मुक्ति का अनुभव कराने का सामर्थ्य रखती है । जहाँ हाथी चिंघाड़ रहे हों, घोड़े हिनहिना रहे हों, रणभेरियाँ भज रही हों, अनेकों योद्धा दूसरे पक्ष के लिए प्रतिशोध की आग में जल रहे हों ऐसी जगह पर भगवान श्रीकृष्ण ने गीता की शीतल धारा बहायी है। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के माध्यम से अरण्य की विद्या को रण के मैदान में ला दिया। शांत गिरि-गुफाओं के ध्यानयोग को युद्ध के कोलाहल भरे वातावरण में भी समझा दिया । उनकी कितनी करूणा है ! गीता भगवान श्रीकृष्ण के श्रीमुख से निकला हुआ वह परम अमृत है जिसको पाने के लिए देवता भी लालायित रहते हैं ।
......और गीता की जरूरत केवल अर्जुन को हो थी ऐसी बात नहीं है । हम सब भी युद्ध के मैदान में ही हैं । अर्जुन ने तो थोड़े ही दिन युद्ध किया किन्तु हमारा त सारा जीवन काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, मेरा-तेरारूपी युद्ध के बीच ही है। अतः अर्जुन को गीता की जितनी जरूरत थी, शायद उससे भी ज्यादा आज के मानव को उसकी जरूरत है ।
श्रीमद् भगवद् गीता के ज्ञानामृत के पान से मनुष्य के जीवन में साहस, सरलता, स्नेह, शांति और धर्म आदि दैवी गुण सहज में ही विकसित हो उठते हैं। अधर्म, अन्याय एवं शोषण मुकाबला करने का सामर्थ्य आ जाता है। भोग एवं मोक्ष दोनों ही प्रदान करने वाला, निर्भयता आदि दैवी गुणों को विकसित करनेवाला यह गीता ग्रन्थ पूरे विश्व में अद्वितिय है ।
हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि पूज्यपाद संत श्री आसाराम जी महाराज के पावन मुखारविन्द से निःसृत श्रीमद् भगवद् गीता के सातवें अध्याय की सरल, सहज एवं स्पष्ट व्याख्या को'गीता प्रसाद' के रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं....
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