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- नारद पुराण के अनुसार सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के समय उपवास करें और ब्राह्मी घृत को ऊँगली से स्पर्श करें एवं उसे देखते हुए ‘ॐ नमो नारायणाय ।’ मंत्र का ८००० बार (८० माला) जप करें । थोड़ा शान्त बैठें ।
- ग्रहण-समाप्ति पर स्नान के बाद घी का पान करें तो बुद्धि विलक्षण ढंग से चमकेगी, बुद्धिशक्ति बढ़ जायेगी, कल्पनातीत मेधाशक्ति, कवित्वशक्ति और वचनशिद्धि (वाक् सिद्धि ) प्राप्त हो जायेगी ।
Ingredients – सामग्री
- ब्राह्मी
Brahmi Ghrita Benefits in Hindi [Brahmi Ghrita ke Fayde]
- यह मेध्य है और स्मरणशक्ति को बढ़ाती है । विशेषकर इससे मस्तिष्क की धारणा शक्ति बढ़ती है ।
- मेध्य और स्मृतिशक्तिवर्धक होने के कारण इसका प्रयोग मस्तिष्क दौर्बल्य एवं तज्जनित उन्माद, अपस्मार आदि विकारों में करते हैं ।
- यह हृद्य है और शोष को दूर करती है तथा रक्तपित्त शामक है ।
- इससे त्वचा की रक्तवाहिनियाँ प्रसारित हो जाती हैं, अतः त्वचागत रक्तसंवहन उत्तम होने से इसकी क्रिया विविध चर्म रोगों पर लाभकर होती है । इससे व्रणों का शोधन एवं रोपण होता है ।
- यह बल्य एवं वय:स्थापन है । इससे शरीर के सभी अंगों की क्रिया उत्तेजित होती है जिससे आरोग्य होता है और बल तथा आयु की वृद्धि होती है ।
- स्तन्य जनन तथा स्तन्य शोधन होने से प्रसव के बाद स्तन्य की कमी एवं विकृति होने पर प्रयोग करते है ।
- कुष्ठनाशक होने के कारण कुष्ठ, विशेषतः ग्रंथिक कुष्ठ, जीर्ण व्रण तथा क्षयज व्रण में प्रयुक्त होती है । फिरंग की द्वितीयावस्था में जब विकार त्वचा एवं कला में अधिष्ठित होता है तब इसके प्रयोग से लाभ होता है । गंडमाला, श्लीपद आदि में भी उपयोगी है ।
How To Use Brahmi Ghrita – उपयोग विधि [Kaise Upyog Kare] – Dosage
- इसके सेवन से अपस्मार, उन्माद, बोलने की कमजोरी अर्थात् साफ-साफ न बोलना अथवा कमजोरी से मिनमिनाकर बोलना, देर से हकलाकर या जल्दी-जल्दी बोलना आदि ।
- बुद्धि की निर्बलता, मनोदोष, स्मरण शक्ति याददाश्त की कमी, स्वरभंग (गला बैठ जाना), दिमाग की कमजोरी, वातरक्त तथा कुष्ठरोग दूर होते हैं ।
- ब्राह्मी बहुत से कंठ रोगों को समाप्त कर कंठ में स्वर को मधुर करने वाली है, इसलिए ब्राह्मी को ‘सरस्वती’ भी कहा जाता है ।
- इसके सेवन से मिर्गी (Epilepsy), उन्माद (Hysteria), मनोदोष (Psychological Disorders) , स्मरणशक्ति की कमी, बुद्धि की मंदता, दिमाग की कमजोरी आदि में बहुत लाभ होता है ।
मात्रा और अनुपान-
- १० ग्राम सुबह गुनगुने पानी के साथ लें।
- 6 माशे से 1 तोला, बराबर मिश्री के साथ दें । ऊपर से धारोष्ण दूध पिलावें ।
Precaution – सावधानी
- इसके अतियोग से कभी-कभी शीतजन्य वातवृद्धि के कारण मद, शिर-शूल, भ्रम और अवसाद उत्पन्न होते हैं । त्वचा में लालिमा और कण्डू होती है । ऐसी अवस्था में मात्रा कम कर दे या प्रयोग बन्द कर दें ।
- त्रिदोषशामक होने से प्रमेह (मूत्र-संबंधी विकार) के सभी प्रकारों में ब्राह्मी घृत एवं मधुमेह को छोड़कर अन्य प्रकार के प्रमेहों में ब्राह्मी शरबत का सेवन हितकारी है ।
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