Buy Shankhpushpi Syrup @Rs.55 [Uses, Fayde] For Adult, Child

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शंखपुष्पी सिरप का नियमित सेवन मस्तिष्क की नाड़ियों की कमजोरी, चक्कर आना, थकावट अनुभव करना, मानसिक तनाव, सहनशक्ति की कमी, चिड़चिड़ापन, नींद ना आना, मन की अशांति, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) आदि रोगों को दूर करके स्मरणशक्ति बढ़ाने में अत्यंत लाभदायी है ।

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शंखपुष्पी सिरप

सामग्री-

  • शंखपुष्पी
  • मण्डूकपर्णी
  • बलाचरा/जटामांसी
  • असगंध
  • धनिया
  • जावित्री
  • सुगंधबाला
  • गिलोय
  • मुलेठी
  • बच
  • खुरासानी अजवाइन
  • नागरमोथा

Shankhpushpi Syrup Benefits in Hindi [Shankhpushpi Syrup ke Fayde]

  • याददाश्त बढ़ाने में मददगार ।
  • बाल बने लंबे और चमकदार ।
  • खून की उल्टी रोके ।
  • मूत्र विकार में फायदेमंद ।
  • अस्थमा, सर्दी, खांसी, बुखार ठीक करे ।
  • मिर्गी ठीक करे ।
  • बवासीर एवं कब्ज दूर करे ।
  • भूख बढ़ाने में मददगार । दरअसल, इसमें भूख और पाचन उत्तेजक गुण होते हैं ।
  • जो लोग मानसिक कमजोरी, मानसिक कार्यभार या मानसिक तनाव के कारण सिरदर्द की समस्या से पीड़ित हैं, उनके लिए शंखपुष्पी सिरप अधिक लाभकारी माना जाता है । यह मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करती है और परेशान नसों को शांत करती है, जिससे सिरदर्द की समस्या में राहत मिलती है । 
  • शंखपुष्पी सिरप का नियमित सेवन मस्तिष्क की नाड़ियों की कमजोरी, चक्कर आना, थकावट अनुभव करना, मानसिक तनाव, सहनशक्ति की कमी, चिड़चिड़ापन, नींद ना आना, मन की अशांति, उच्च रक्तचाप (हाई ब्लडप्रेशर) आदि रोगों को दूर करके स्मरणशक्ति बढ़ाने में अत्यंत लाभदायी है ।

नोट:-  जो व्यक्ति ऑफिस में, दुकान पर हिसाब-किताब, ड्राइविंग, वकील, कम्प्युटर/लेपटॉप पर कार्य एवं पढ़ाई-लिखाई का कार्य अधिक करते हैं उन्हें शंखपुष्पी सिरप का सेवन नियमित रूप से करना ही चाहिए । शंखपुष्पी सिरप हमारे मस्तिष्क (दिमाग) की नस-नाड़ियों को पुष्ट करके उन्हें पोषण देती है ।

Shankhpushpi Syrup for Children –

  • शंखपुष्पी सिरप पूरी तरह से एक निर्दोष आयुर्वेदिक औषधि है । इसके सेवन से कोई भी साइड इफेक्ट नहीं होता है । इसे हर उम्र के बच्चे, युवान व बुजुर्ग व्यक्ति निश्चिंतता से प्रतिदिन सेवन कर सकते हैं । जिन्हें रात को नींद नहीं आती है वह सोते समय 3 चम्मच शंखपुष्पी सिरप पियें तो उन्हें नींद अच्छी आती है ।

Shankhpushpi Syrup Age Limit –

  • इसे हर उम्र के बच्चे, युवान व बुजुर्ग व्यक्ति निश्चिंतता से प्रतिदिन सेवन कर सकते हैं । 

How To Use Shankhpushpi Syrup – उपयोग विधि [Kaise Upyog Kare] – Dosage

2 चम्मच सुबह एवं 2 चम्मच शाम खाली पेट बिना पानी के ही ले सकते हैं । बड़ों को 3 चम्मच सुबह एवं 3 चम्मच शाम को ले सकते हैं ।

तत्व विश्लेषण:

इसमें निहित घटक द्रव्य व उनके लाभ :

☛ शंखपुष्पी :

 मेध्य, तनावमुक्त करनेवाली, निद्राजनक । शंखपुष्पी एक प्रकार का फूल है जो आयुर्वेद के औषधि के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाती है । चरक संहिता के ब्रह्मरसायन में तथा मिर्गी के चिकित्सा में शंखपुष्पी के प्रयोग का उल्लेख मिलता है । इसके अतिरिक्त खांसी की चिकित्सा के लिए अगस्त्य हरीतकी योग में और द्विपंचमूलादिघृत में शंखपुष्पी का वर्णन मिलता है । आचार्य सुश्रुत ने भी तिक्त गण में शंखपुष्पी के बारे में चर्चा की है ।

☛ मण्डूकापर्णी 

मण्डूकपर्णी स्मृतिवर्धक, बुद्धिवर्धक, मेध्य तथा कुष्ठ, पांडु एवं मस्तिष्क के विकारों में लाभकारी है । यह हृदय के लिए बलकारक, स्तन्यजनन, स्तन्य-शोधक, व्रणरोपक, व्रणशोधक, वयस्थापक एवं रसायन है । मण्डूकपर्णी का अर्क पाण्डु रोग, विषदोष, शोथ तथा ज्वर-शामक होता है । इसका शाक कटु, तिक्त, शीत, वातकारक तथा कफपित्तशामक होता है ।

☛ बलाचरा/जटामांसी

जटामांसी सहपुष्पी औषधीय पौधा होता है । आयुर्वेद के अनुसार जटामांसी के फायदे  इतने होते हैं कि आयुर्वेद में इसको कई बीमारियों के लिए औषधि के रुप में प्रयोग में लाया जाता है । सांस, खांसी, विष संबंधी बीमारी, विसर्प या हर्पिज़, उन्माद या पागलपन, अपस्मार या मिर्गी, वातरक्त या गाउट, शोथ या सूजन आदि रोगों में जिस धूपन का इस्तेमाल होता है उसमें अन्य द्रव्यों के साथ जटामांसी का प्रयोग मिलता है । सुश्रुत-संहिता में व्रणितोपसनीय जटामांसी का उल्लेख मिलता है । सिर दर्द के लिए जटामांसी एक उत्कृष्ट औषधि है । यह बहुत ही स्वास्थ्यप्रद होता है ।

☛ अश्वगंधा

यह एक प्राचीन और महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है । इसका इस्तेमाल जीवन की अनेक प्रक्रियाओं में किया जाता है । इसके शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता में लाभ पहुँचाने की खूबी के कारण इसे ‘भारतीय जिनसेंग’ भी कहा जाता है । अश्वगंधा में यह एंटी-स्ट्रेस प्रभाव सिटोइंडोसाइड्स और एसाइलस्टरीग्लुकोसाइड्स नामक दो कंपाउंड की वजह से पाया जाता है । ये अश्वगंधा के गुण तनाव से मुक्ति दिलाने में मदद कर सकते हैं । 

☛ धनिया 

धनिए का सेवन पाचन में सुधार लाता है तथा भूख को बढ़ाता है । पाचन संबंधित समस्याओं, जैसे मतली, एसिडिटी, डायरिया आदि के उपचार के लिए धनिए के क्वाथ का छाछ के साथ दिन में दो बार सेवन करना चाहिए । जले हुए या जख्म पर इसका पेस्ट लगाने से संक्रमण से बचाव होता है ।

☛ जावित्री

जावित्री के अंदर मिनरल्स, मैग्नीशियम, कैल्शियम और कई तरह के पोषक तत्‍व मौजूद होते हैं, जो कि सेहत के लिए गुणकारी होते हैं । जावित्री मसाले को किडनी के लिए काफी फायेदमंद माना जाता है । ये किडनी में मौजूद पथरी को गलाने में मददगार होता है । पथरी के अलावा ये किडनी की रक्षा कई तरह के इंफेक्शन से भी करता है ।

☛ सुगंधबाला 

सुगन्धबाला कड़वा, छोटा, लघु, रूखा और ठंडे तासीर का होता है । यह पित्त और कफ कम करनेवाला, पाचक शक्ति व खाने की रुचि बढ़ाने वाला, जलन व बार-बार प्यास लगने की इच्छा कम करने वाला तथा घाव को जल्दी सुखाने में मदद करनेवाला होता है । इसके अलावा सुगंधबाला उल्टी, दिल की बीमारी, बुखार, कुष्ठ, अल्सर, नाक-कान से खून बहना, खुजली तथा जलन से राहत दिलाने में मदद करता है । इसकी जड़ प्रवाहिका, पेटदर्द, ब्लीडिंग तथा आमवात  के कष्ट के उपचार में सहायता करती है । 

☛ गिलोय 

गिलोय में बहुत अधिक मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं । साथ ही इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी और कैंसर रोधी गुण होते हैं । इन्हीं गुणों की वजह से यह बुखार, पीलिया, गठिया, डायबिटीज, कब्ज़, एसिडिटी, अपच, मूत्र संबंधी रोगों आदि से आराम दिलाती है ।

☛ मुलेठी 

कंठ शुद्धिकर, कफघ्न, स्वरसुधार एक छोटी बारहमासी जड़ी बूटी है जो परंपरागत रूप से श्वसन सम्बंधी विकार, हाइपरडिप्सिया, मिर्गी, बुखार, यौन दुर्बलता, पक्षाघात, पेट के अल्सर, गठिया, त्वचा रोग, रक्तस्रावी रोगों जैसे कई रोगों के इलाज़ के लिए उपयोग की जाती है ।

☛ वच

आयुर्वेद में वच (Vacha Herb) को बहुत ही उपयोगी और असरकारक उत्तम गुणों से युक्त औषधि की संज्ञा दी गई है । वैसे वच का उपयोग लोग घरेलु उपायों में पेशाब से संबंधित दिक्कतों, बुखार के तेज दर्द में राहत, पेचिश की रोकथाम, पेट में बनने वाली गैस, मिर्गी रोग, कफ दोष और गठिया जैसे रोगों के निदान में करते हैं । इसके अतिरिक्त, आयुर्वेदिक चिकित्सक लगातार बुखार आने पर मरीज को वच औषधि का परामर्श देते हैं ।

☛ खुरासनी अजवाइन 

इसके बीज तीखे कड़वे, गरम, अग्नि को दीप्त करने वाले, आंतो को सिंकोड़ने वाले, मादक, भारी, अग्निवृद्धक तथा अजीर्ण, अपच, पेट के कीड़े, आमशुल और कफ को नष्ट करने वाले होते हैं ।

☛ नागरमोथा

दाहशामक, पित्तशामक, कृमिघ्न, पाचक । आयुर्वेद मुख्य रूप से विभिन्न औषधीय प्रयोजनों के लिए जड़ों के उपयोग का सुझाव देता है । प्राचीन काल से रोगों के उपचार के लिए उपयोग किये जाते हैं । वे या तो ताज़ा या सूखे या काढ़े में तैयार किए जाते हैं ।

Additional information

Net Weight (after packaging) 300 g
Volume

200ml

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